Monday, May 30, 2011

थक गयी है मेरी निगाहें अजन्बिओं में सफ़र करते करते,
न जाने किस मोड़ पर  वोह चेहरा -ए- मंजिल मिलेगी,

Wednesday, May 18, 2011

किस नज़र से आज वो देखा किये, 
     दिल मेरा डूबा किया उछला किया.
अपनी मिटटी पे ही चलने का सलीका सीखो,
 संगमरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे,